भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज दशहरा है / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
चलो चलो जी, मेला देखें,
आज दशहरा है।
खिला-खिला सा शहर आज है
झिलमिल-झिलमिल सपने,
लेंगे तीर-कमान, बाँसुरी
ये होंगे अब अपने।
उड़ते गुब्बारों जैसा ही
गप्पू का चेहरा है।
रानी को रसगुल्ले भाते
ढब्बू खाता चमचम,
रंग-बिरंगी चरखी-झालर
लेकर झूलो पम-पम।
जरा जलेबी हमको भी दो
बोल रही सहरा है!
पर थोड़ी मुश्किल है भाई
खत्म न हुई लड़ाई,
रावण का अभिमान अभी है
पग-पग पर है खाई।
सच्चाई पर स्याह झूठ का
अब भी पहरा है!