आज दिखती है मेरे यार की सूरत कैसी।
ग़ैर जब हमको कहा फिर ये मुहब्बत कैसी॥
आपने छोड़ दिया साथ कोई बात नहीं
अब नये दौर में करते हैं मुरव्वत कैसी॥
हर गुनहगार यहाँ आ के छूट जाता है
जाने लोगों ने बनाई है अदालत कैसी॥
वो जो औरों के लिये ज़िन्दगी क़ुर्बान करे
ऐसे लोगों से भला हो भी बग़ावत कैसी॥
जो वतन पर हैं फ़िदा जान हथेली पर लिये
उनको पत्थर हैं मिले है ये सियासत कैसी॥