आज देश ने स्वतंत्रता का बरबस दान लिया / बलबीर सिंह 'रंग'
आज देश ने स्वतंत्रता का बरबस दान लिया।
मतभेदों के छिद्र हुए नव युग के निर्माणों में,
हठधर्मी की लगी कालिमा उज्ज्वल बलिदानों में,
लूटी गई गोप ललनाएँ विजयी बने लुटेरे,
अधिकारांे की जंग लग गई अर्जुन के बाणों में,
वैमनस्यता ने मनुष्यता का अपमान किया।
आज देश ने स्वतंत्रता का बरबस दान लिया।
बिना प्रयास महत्व मिल गया घातक प्रस्तावों को,
लगी भयंकर ठेस देश के दर्दीले घावों को,
बढ़ी कलह की आग सुलह की सूखी समिधाओं से,
क्रांति पथिक का मार्ग रुका वैधानिक बाधाओं से,
पथ की दूरी के विराम को मंजिल मान लिया।
आज देश ने स्वतंत्रता का बरबस दान लिया।
एक बार सागर मंथन से विष का जन्म हुआ था,
अमृत मिला अमरों की धरती ने ही गरल छुआ था,
क्षीर-सिन्धु में आज लग गई चतुरानन अकुलाए,
तब जग के कल्याण हेतु शिव नील-कण्ठ कहलाए,
आज दूसरी बार शम्भु ने विष का पान किया।
आज देश ने स्वतंत्रता का बरबस दान लिया।