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आज नदी बिलकुल उदास थी / केदारनाथ अग्रवाल
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					आज नदी बिलकुल उदास थी। 
सोई थी अपने पानी में, 
उसके दर्पण पर- 
बादल का वस्त्र पडा था। 
मैंने उसको नहीं जगाया, 
दबे पांव घर वापस आया।
	
	