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आज नहीं तो कल / रविशंकर मिश्र
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आज नहीं तो कल
अच्छे दिन आयेंगे
हम सपनों का
गाल नोच दुलरायेंगे।
फीके पड़ते रंगो से
घबराना क्या
इन्द्रधनुष का अपना
ठौर-ठिकाना क्या
बादल फिर से
अपनी पीठ खुजायेंगे।
भला-बुरा
नंगी आँखों से देखेंगे
खुली हवा में
खिली धूप हम सेकेंगे
यूँ ही नहीं
किसी को हम गरियायेंगे।
सब कुछ है गर
ढोलक है हरमुनिया है
उम्मीदों पर टिकी हुई
यह दुनिया है
हम इस दुनिया को
आगे ले जायेंगे।