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आज नहीं तो कल / राजेन्द्र वर्मा
Kavita Kosh से
समय बदलता है, बदलेगा
आज नहीं तो कल,
क्षमा और करुणा के आगे
हारेगा ही छल ।
माना अँधियारा जगता है
अपनों से भी डर लगता है
लेकिन तनिक सोच तो रे मन!
डूबा सूरज फिर उगता है
गहन निराशा में भी पलता
आशा का संबल।
सागर का विशाल तन-मन है
किन्तु नदी का अपना प्रण है
जीव-जन्तु को जीवन देकर
पूरा करती महामिलन है
आओ, दो पल हम भी जी लें,
ज्यों सरिता का जल ।
कोई छोटा-बड़ा नहीं है
लेकिन मन में गाँठ कहीं है
बड़ा वही जो छोटा बनता
जहाँ समर्पण, प्रेम वहीं है
प्रेम-भाव से मिल बैठेंगे,
निकलेगा कुछ हल ।।