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आज नहीं तो कल / विनीत पाण्डेय
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आज नहीं तो कल दुश्वारी आएगी
एक न इक दिन सबकी बारी आएगी
आग हवा दे कर भड़काई है जिसने
उसके घर तक भी चिंगारी आएगी
नस्ल है ये गद्दारों की तो लाजिम है
उसके लहू में भी गद्दारी आएगी
रोज इसी का झगड़ा तू-तू मैं-मैं है
अगली दफ़ा किसकी सरदारी आएगी
सिर्फ सियासत करना जिनका पेशा है
काम न उनसे कोई यारी आएगी