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आज न जाने क्यों मन मेरा मरा मरा सा है / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा
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आज न जाने क्यों मन मेरा मरा मरा सा है।
अपनी ही परछाईं से यह डरा डरा सा है॥
चलते चलते जीस्त अचानक
ठहर सी गयी है
सीधी बहती धारा जैसे
लहर सी गयी है
आँखों से आंसू का झरना झरा झरा सा है।
आज न जाने कईं मन मेरा मरा मरा सा है॥
सीली धूनी जैसा सुलगा
अब तक बहुत जला
राह न सूझे पग पग बाधा
फिर भी बहुत चला
कोई जिये मरे जग का मन हरा हरा सा है।
आज न जाने क्यों मन मेरा मरा मरा सा है॥
घिरने लगा अँधेरा कोई
दीप जला लेता
तनहाई में कोई मधुरिम
गीत सुना लेता
किन्तु करे क्या आज कंठ भी भरा भरा सा है।
आज न जाने क्यों मन मेरा मरा मरा सा है॥