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आज प्रिय का ख़त मिला है / सरोज मिश्र
Kavita Kosh से
ये हँसी उन्माद के क्षण, यूँ नहीं मन में समाये।
आज प्रिय का ख़त मिला है।
छोड़ कर पतवार नावें,
चल पड़ी हैं किस दिशा में।
चाँद भी मदहोश होकर,
डूबता जाता निशा में।
बंद शतदल पर किरन, की माधुरी जब गीत गाये।
हर भ्रमर का दिल जला है।
आज प्रिय का ख़त मिला है।
व्योम वैभव रूप का सब।
प्रिय ने मेरे लिख दिया है
जानकर छोड़ा है चुम्बन,
हेतु रीता हाशिया है।
और कोमल पुष्प रति का, रूप की आभा बिछाये।
दर्प का दर्पण गला है।
आज प्रिय का ख़त मिला है।
लिख रहे बीते सपन क्यों,
प्रेम की मनुहार लिखते।
दूरियों में क्यों न प्रियतम,
प्रीति का विस्तार लिखते।
फिर उसी छल पाश से तुम,
नेह म्रदु आँचल बचाये।
एक लम्बा सिलसिला है।
आज प्रिय का ख़त मिला है।