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आज फ़िर ख़ाब में तुझे देखा / रविकांत अनमोल

आज फिर ख़ाब में तुझे देखा

हौले-हौले से कोई मीठी सी
बात करती थी मेरे कानों में
मेरे कांधों पे अपना सर रख के
जैसे वो दिन अभी गए ही नहीं
आज फिर ख़ाब में तुझे देखा

वो ही गेसू थे वो ही आँखें थीं
वो लरज़ते हुए से लब तेरे
जैसे खाई अभी क़सम कोई
मेरे हाथों को हाथ में ले कर
आज फिर ख़ाब में तुझे देखा

मेरे पहलू में बैठ हँसते हुए
मेरे हाथों को चूमना तेरा
वो ही बातें वही छुअन तेरी
नींद टूटी तो आँख भर आई
आज फिर ख़ाब में तुझे देखा