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आज फिर आई जवानी की हवा / बलबीर सिंह 'रंग'

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आज फिर आई जवानी की हवा।
कुछ न कह पाई जवानी की हवा।

कौन है जिसको जवानी से न प्यार,
और फिर उसकी कहानी से न प्यार?
किस को संघर्षों ने झकझोरा नहीं,
किस के जीवन में नहीं आई बहार?
कौन है ऐसा धरणि का देवता,
जिसने ठुकराई जवानी की हवा।
आज फिर आई जवानी की हवा।

कांप उठते हैं हिमालय के शिखर,
चांद-सूरज भूमि पर आते उतर।
ठहर पाते हैं उनन्चासों पवन,
और त्रिभुवन में जलधि जाते बिखर।
जब कि चलती है कभी बे रोक-टोक,
ले के अँगड़ाई जवानी की हवा।
आज फिर आई जवानी की हवा।

आज मेरी आग पानी हो गयी,
बात भी क्या थी कहानी हो गई।
मद भरे जीवन के भूखे प्यार की
प्यास भी तो अब पुरानी हो गई।
देखकर मुझ को व्यथाओं से भरा-
नयन भर लाई जवानी की हवा।
आज फिर आई जवानी की हवा।

जिसके पाने को स्वयंम् मैं खो गया,
जिसके कारण क्या से क्या हो गया।
जिसकी कोमल कल्पना की छांह में-
हार कर उन्माद मेरा सो गया।
उस अधूरे स्वप्न के विश्वास पर,
मैंने तरसाई जवानी की हवा।
आज फिर आई जवानी की हवा।