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आज फिर इन्साफ़ को मिट्‍टी में दफ़नाया गया / उमेश पंत

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आज फिर इन्साफ़ को मिट्‍टी में दफ़नाया गया
जमहूरियत की शक्ल का कंकाल फिर पाया गया ।

उनकी सियासत की जदों में क़त्ल मानवता हुई
कहके यही इन्साफ़ है फिर हमको भरमाया गया ।

जिस शख़्स की ग़लती के कारण मिट गई जानें कई
उसको बड़े आदर से उसके देश भिजवाया गया ।

आता है अब भी ज़हन में बच्चा वो मिट्‍टी में दबा
अरसे से हर अख़बार की सुर्ख़ी में जो पाया गया ।

सालों से जो आँखें लगाए आस बैठी थी उन्हें
नृशंसता की हद का यूँ अहसास करवाया गया ।

कैसे हैं ज़ालिम लोग ये सत्ता में जो बैठे हुए
न्याय को जो इस कदर फाँसी पे लटकाया गया ।

शहर में उस दिन बही जो गंध भ्रष्टाचार थी
यूनियन कार्बाईड जिसका नाम बतलाया गया ।

बैठेंगे वो कुछ लोग बस कुछ वर्ष कारावास में
त्रासदी की भूमिका रचते जिन्हें पाया गया ।

जी रहे थे हम के जिसमें, वहम था जनतंत्र का
लोक को यूँ तंत्र के पैरों से रुंदवाया गया ।

तंत्र ही सब कुछ यहाँ है लोक की औकात क्या
इस पुराने सत्य को संज्ञान में लाया गया ।

उनके मंहंगे शौक और सस्ता है कितना आदमी
कल हमें इस आर्थिक पहलू को समझाया गया ।

अन्याय की स्याही से ये लिक्खा हुआ मृतलेख है
कानून का जामा ओढ़ाकर हमको सुनवाया गया ।

तब मरे थे लोग अब टूटा भरोसे का भी दम
इस तरह भोपाल पर भोपाल दोहराया गया ।