भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज फिर कोई नयी बात चलाई जाये / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज फिर कोई नयी बात चलाई जाये
आईने पर भी जमी धूल हटायी जाये

फिर जरा ढूंढ लें खोया हुआ दीवान कोई
किताबे इश्क भी बाजार से लायी जाये

आग नफरत की भड़कती है उठ रहे शोले
आबे उल्फ़त को जरा डाल बुझायी जाये

अब यहाँ पर हुआ दहशत का बोलबाला है
इक मुहब्बत की नयी दुनियाँ बसायी जाये

खूब चिंगारियाँ फूलों के चमन पर बरसीं
सींच कर इन में जरा खाद मिलायी जाये

रात काली है बहुत हर तरफ अँधेरा है
इल्म की आओ एक शम्मा जलाई जाये

जह् न में सबके थिरकते हैं मौत के साये
आबे जमजम की इन्हें बूंद पिलायी जाये