आज फिर मुझसे मिली है ज़िन्दगी
सर झुकाये चुप खड़ी है ज़िन्दगी
ढ़ेर सारे मंज़रों के दरमियाँ
हाय क्या बे-मंज़री है ज़िन्दगी
रेत में ठहरे सफ़ीने की तरह
तिश्नगी ही तिश्नगी है ज़िन्दगी
बेसबब क्यूं ग़ैर को इल्जाम दूँ
वक़्त के हाथों छली है ज़िन्दगी
कौन जाने किस तरफ ले जायेगी
एक बहती सी नदी है ज़िन्दगी
गा रहा हूँ मैं बिना सुर-ताल के
दर्द भीगी शाइरी है ज़िन्दगी