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आज फिर रिश्तों को कीमत से चुकाया जाए / पूजा श्रीवास्तव
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आज फिर रिश्तों को कीमत से चुकाया जाए
इन इरादों को मगर दिल से छुपाया जाए
मुद्दतों से धड़क रहा है दिल में इक पत्थर
आज ठोकर लगाके इसको रुलाया जाए
आतिशी इश्क़ के पहलू में हुस्न है ही अगर
चलो फिर आग में पानी को मिलाया जाए
एक बेवा ने रखी रात भी गिरवी ताकि
चार पैसे मिलें अर्थी को उठाया जाए
मुफलिसी की तो परेशानियाँ भी मुफलिस हैं
सोचती हैं कि या ओढें या बिछाया जाए
हौसलों की जरा हिम्मत तो देखिए सूरज
चाहते हैं कि हथेली पे उगाया जाए
शर्तो सुविधाओं की गरज़ से बनाकर रक्खें
एक रिश्ता हो यूँ कि जिसको निभाया जाए