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आज फिर वह आ रहे हैं / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
आज फिर वह आ रहे हैं
हम ही अब घबरा रहे हैं।
एक दिल्ली में करोड़ों
लोग बसने जा रहे हैं।
हर ग़ज़ल में खूबसूरत
पंख हम लगवा रहे हैं।
आप मेरे साथ है तो
जी तनिक बहला रहे हैं।
कौन किसको साथ देता
राह वह भटका रहे हैं।
काम वे करते नहीं, बस
मुफ़्त में ही खा रहे हैं।