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आज बिरज में होरी रे रसिया / ब्रजभाषा
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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आज बिरज में होरी रे रसिया॥ टेक
होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥ आज.
कौन के हाथ कनक पिचकारी,
कौन के हाथ कमोरी रे रसिया॥ आज.
कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी,
राधा के हाथ कमोरी रे रसिया॥ आज.
अपने-अपने घर से निकसीं,
कोई श्यामल, कोई गोरी रे रसिया॥ आज.
उड़त गुलाल लाल भये बादर,
केशर रंग में घोरी रे रसिया॥ आज.
बाजत ताल मृदंग झांझ ढप,
और नगारे की जोड़ी रे रसिया॥ आज.
कै मन लाल गुलाल मँगाई,
कै मन केशर घोरी रे रसिया॥ आज.
सौ मन लाल गुलाल मगाई,
दस मन केशर घोरी रे रसिया॥ आज.
‘चन्द्रसखी’ भज बाल कृष्ण छबि,
जुग-जुग जीयौ यह जोरी रे रसिया॥ आज.