भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज भई मोरे मन की, सुनो सैंया / बुन्देली
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
आज भई मोरे मन की, सुनो सैंया
सासो न आवे हमारो का बिगरे,
चरुजा चढ़ाई बच जैहें, सुनो सैंया। आज...
तुम उठके पिया चूल्हा जलइयो,
हम चरुआ धर लैहें, सुनो सैंया। आज...
जिठनी न आवे हमारो का बिगरे,
लड्डू बंधाई बच जैहें, सुनो सैंया। आज...
तुम उठ के पिया मेवा ले अइयो,
हम लड्डू बांध लैहें, सुनो सैंया। आज...
ननदी न आवें हमारो का बिगरे,
संतिया धराई बच जैहें, सुनो। सैंया...
तुम उठके पिया गोबर ले आइयो,
हम संतिया धर लैहें, सुनो सैंया। आज...
पड़ोसन न आवे हमारो का बिगरे,
सोहर गबाई बच जैहें, सुनो सैंया। आज...
तुम उठके पिया ढोलक बजइयो,
हम सोहर गा लैहें, सुनो सैंया। आज...