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आज भरल बादल से / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
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आज भरल बादल से
झर-झर जल झर रहल ब।
आज बेचैन जलधार
आकाश छेद के
धरती पर लपक रहल बा।
आज शालवन का ऊपर
गरज-गरज के
बादल दोल्हा-पँती खेल रहल ब।
खेत खरिहान में,
आज पानी के पवनारा
मनमानी ढंग से चल रहल बा।
आज मेघ रूपी जटा छितरा के
के नाच रहल बा?
आज बरखा में हमार मन
फेनू बेकाबू हो गइल बा।
रिमझिम जलधार
ओके लूट ले ले बा।