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आज भी न आए / रामगोपाल 'रुद्र'
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आज भी न आए!
किस लाज के लजाए? !
घाट के कथा तो
अब हो चुकी पुरानी;
कौन चौंकता है
सुन चीर की कहानी? !
क्या हुआ रई को?
चलती नहीं चलाए!
हर तरफ़ खड़ी हैं,
अपवाद की उँगलियाँ;
भीत क्या टपूँ मैं!
हैं बंद सभी गलियाँ;
द्वार पर खड़े हैं
सब खुखड़ियाँ उठाए!
टेर रहे मुझको,
अब किस करील बन में?
बिंध रही यहाँ मैं,
कंटाल आयतन में!
कौन भला उनको,
अब तस्करी सिखाए?