भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज भी प्यार / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
Kavita Kosh से
प्यार है आज भी प्यार सा
किनारे आज भी किनारे हैं
वक़्त कुछ नहीं बदलता
समुंदर भी कुछ नहीं बदलता
गाँव है आज भी गाँव सा
इंसान आज भी इंसान है
शहर कुछ नहीं बदलता
ज़माना भी कुछ नहीं बदलता
दर्द आज भी दर्द सा है
दवा आज भी दवा है
वक़्त कुछ नहीं बालता
वक़्त कुछ भी नहीं बदलता
राह आज भी राह है
सफ़र आज भी सफ़र है