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आज भी बनवास / कविता भट्ट

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1
ऐतिहासिक
हारना या जीतना
घृणित मानी
यह सर्जन -शक्ति !
क्यों सदा तिरस्कृता ।
2
प्रायः रही है
निर्जीव संपत्ति -सी
युद्ध-द्यूत में
‘नारी केवल श्रद्धा’
गाया ही जाता रहा ।
3
पुरुष बना -
तर्क-न्याय प्रणेता
छद्मवेशी भी
अहल्या शिलामात्र
हाय! ये धर्मशास्त्र
4
रथ विराजे
या शीश कटे राजे
युद्ध में हारे-
सुन्दर पटरानी
कुछ नर्तकियाँ भी ।
5
राम-रावण
सिद्ध करते पौरुष,
साधन सीता
क्यों देवी विवशता
अक्षरशः मूढ़ता ।
6
पंचकन्या में
मन्दोदरी, तारा भी
कंदुक- सी ही,
रावण विभीषण
खेले सुग्रीव-बाली
7
राम न आए
उतरकर द्वार
राजा ठहरे !
सीता के वे उद्गार
तुलसी भूल गए ।
8
सीता-वीरता
रचते उत्तर में
तुलसीदास
तो कभी नहीं होता
आज भी बनवास