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आज भी / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
पीले पड़ गए हैं प्रेम पत्र
अक्षर उकेरती उँगलियों की
ध्वनियाँ
गुम गयी हैं कहीं स्मृति के
निविड़ में
हथेलियों की ओट में सरसराती उँगलियों
के रास्ते
आँखों के मार्दव का
पन्नों पर
उतरना
चुप –चुप
सांसों की उसांसों में
...उतरते हुए महसूस करना
शब्दों की गरमाई
अब याद नहीं कुछ याद के सिवा
बस बची रह गयी है कोई खुशबू
कोई महसूस
कोई नामालूम
ऊष्मा
पन्नों पर सरकती उँगलियों की
सांकेतिक ध्वनियाँ
आँखों में
अनभूला छूटा हुआ
रहस्यमय किसी अर्द्धस्वप्न-सा
क्या है जो फिर भी बचा रह गया है
आज भी!