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आज माहौल दुनिया का खूंरेज़ है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

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आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है
है हलाकू कोई, कोई चंगेज़ है

गैर के रंग में, हैं रंगे लोग कुछ
रूह में बस गया जिनके अँगरेज़ है

गौर से देखिये गुलशन-ए-हुस्न में
"हर कली ख़ूबसूरत है नौ-खेज़ है"

मुस्कुरा कर सहेली ने उस से कहा
उड़ न जाए दुपट्टा हवा तेज़ है

उम्र भर जो रहे देखते आईना
आइने से उन्हें आज परहेज़ है

डर है दुनिया का नक्शा न बदले कहीं
रंगरेज़ी पे आमादा रंगरेज़ है

वक़्त है कर ले तौबा ख़ुदा से 'रक़ीब'
साग़रे ज़िंदगी तेरा लबरेज़ है