भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज मौसम में कुछ नमी सी है / अलका मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज मौसम में कुछ नमी सी है
बर्फ़ रिश्तों में फिर जमी से है

साथ सब हैं मगर बिना तेरे
सूनी महफ़िल है कुछ कमी सी है

मैं फ़रिश्ता जिसे समझ बैठी
उसकी फ़ितरत भी आदमी सी है

जब से उसने कहा वो आएगा
जाने क्यों साँस ये थमी सी है

आज वो है मेरी पनाहों में
आज की रात शबनमी सी है