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आज रात ठहर जाओ यहीं, सहर / तारा सिंह

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आज रात ठहर जाओ यहीं, सहर होने तक
कल जाने कहाँ रहूँ, तुमको खबर होने तक

रहने दे अपने नाम, मेरे नाम के पते से
दिले-बेताब के हर तार को, विस्तर होने तक

उड़ती फ़िरेगी खाक मेरी, कू-ए-यार में, इतना
न तूल दे अपने नाम को, मुख्तसर होने तक

तुम्हारे पास बीमारे-मुहब्बत के लिए दुआ नहीं
मैं दुआ करता हूँ, दुआ का असर होने तक

उस बीमारे मुहब्बत की क्या, जो शीशे पर रखकर
चाटते हैं अपना लब, जख्मे जिगर होने तक