आज राम में राज बढ़ा लो / शिवदेव शर्मा 'पथिक'
हर वर्ष मनाते राम-जन्म का दिवस सभी,
तुम राम-राज का दिवस मना लो तो जाने!
पाषाण पूजते हो मंदिर में जा-जाकर,
जग को अपना भगवान बना लो तो जाने!
निर्जीव पत्थरों की पूजा से क्या होगा?
आरती सजा लो अथवा सीताराम कहो।
मूर्तियां राम की बिकती है बाजारों में,
दो दाम प्रथम, कुछ पैसे दो, तब राम कहो।
भगवानों पर तो लगते हैं मेले कितने,
इंसानों को तुम गले लगा लो तो जाने।
मंदिर में घी की जली आरती सदियों से,
पर कुटियों में तुम दीप जला लो तो जाने।
तुम अपना खोया राम अगर पाना चाहो,
तो आओ! नूतन जन- युग का निर्माण करो।
अपना कल्याण अगर चाहो भूले मानव!
तो जन-जन का सम्मान करो, कल्याण करो।
माना तुम खूब पचाते हो मेवे,लड्डू,
सूखी जौ की रोटियां पचा लो तो जाने।
माना तुम खूब बचाते हो अपनी लज्जा,
पर हर घर-घर की लाज बचा लो तो जाने।
रे!राम न मिलने वाला है तुम नाम जपो,
था राम मनुज-अवतार मनुज में छिपा हुआ,
तुम क्रय करते ईमान स्वर्ण की छाया में,
रे!किन्तु राम तो धन खेतों में टिका हुआ।
सब भार उठाया करते हैं अपना- अपना,
पर निर्बल का तुम भार उठा लो तो जाने।
तुम महल सजाते हो अपना,अपना कह कर,
आ! फूसों का संसार सजा लो तो जाने।
लू-लपटों में जली राम की पावन काया,
लू-लपटों में जली हुई है युग की सीता।
राम नाम रस प्याला कहकर, मानव झूठा,
आज उठा कर छल वैभव की प्याली पीता।
गढ़ चुके रूप भगवानों के मंदिर में ही,
तुम जन-मंदिर में नाम गढ़ा लो तो जाने।
प्रतिवर्ष राम का नाम राम तक रह जाता,
पर आज राम में राज बढ़ा लो तो जाने।