भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज रौशन अँधेरे हुए / अभिषेक कुमार अम्बर
Kavita Kosh से
आज रौशन अँधेरे हुए
रात में भी सवेरे हुए।
चाँद तारों की औकात क्या
आज तो हम भी तेरे हुए।
गोपियाँ आज सारी खड़ी
तट पे कान्हा को घेरे हुए।
रूठिए यों न हमसे सनम
बैठिए मुँह न फेरे हुए।
रहजनों का हमें खौफ क्या
अब तो रहबर लुटेरे हुए।
नाम जब जब तुम्हारा सुना
ग़म के बादल घनेरे हुए।