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आज वो भी घर से बेघर हो गया / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
आज वो भी घर से बेघर हो गया
एक सहरा था समुंदर हो गया
पानियों में अक्स अपने देखता
कल का पापी अब पयम्बर हो गया
मैं रहा चमगादड़ों के गोल<ref>झुंड</ref> में
और वो जंगली कबूतर हो गया
अपनी परछाई के पीछे दौड़ता
वो घने जंगल से बाहर हो गया
कनखजूरे के क़दम बढ़ने लगे
ज़र्रा ज़र्रा जब मुखद्दर<ref>स्तब्ध</ref> हो गया
उससे मिलना मारके<ref>युद्ध</ref> से कम न था
चलिए ये भी मारका सर हो गया<ref>युद्ध निपट गया</ref>
शब्दार्थ
<references/>