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आज शहर में आग लगी है / ज्ञान प्रकाश आकुल

आज शहर में आग लगी है,
नल से लाल लहू निकलेगा।

दिन भर लाउडस्पीकर पर
तरह तरह के भाषण बोली
पलक झपकते आ जाते हैं
चाकू तेग तमंचे गोली
और रात को लाशें गिनने-
की खातिर उल्लू निकलेगा।

जासूसी से डरे शहर ने
हर भिखमंगा भगा दिया है
बाजू वाले अब्दुल चाचा ने
घर ताला लगा दिया है
मुझे फोन पर पूछ रहे थे कब?
आखिर कब तू निकलेगा।

सड़कों ने खामोशी झेली
गलियों ने झेला है सदमा
मुजरिम है मालूम सभी को
चाहे जब तक चले मुकदमा
आग लगाने का आरोपी
जुगनू है, जुगनू निकलेगा।