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आज शहर में पानी बरसा / हरिवंश प्रभात
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आज शहर में पानी बरसा।
तुम भी तरसे, मैं भी तरसा।
याद किसी की मन में आई,
जैसे घर हो प्रेम नगर-सा।
जिसको मैंने फूल दिया था,
उसके घर से निकला फरसा।
आया टहल मैं गाँव–नगर से,
ना तुम-सा ना तेरे घर-सा।
पीहर में सुख लाख मिला पर,
भूला नहीं बचपन नइहर-सा।
धन ‘प्रभात’ मिला है तुमको,
मगर मिला ना मेरे जिगर-सा।