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आज शाम / प्रभात रंजन
Kavita Kosh से
आस्माँ पर
आज शाम,
गुलाबों की पंखुरियाँ कौन बिछा गया है?
पंखुरियों की पंक्तियों पर पंक्तियाँ
लाल, पीले, श्वेत, नीले
गुलाब की पंखुरियों के
झिलमिलाते साये
कौन डाल गया है?
चिकनी पंखुरियाँ
एक पर एक, एक पर एक...
अनगिनत फूलों की...
गुलमुहर, चम्पा, बेले के रेशे-
कौन बिछा गया है?
शायद,
वे अभी
दफ़न करके लौटे हैं
सूरज को।
कुछ काले हाथ
मज़ार पर
फूल डाल आए हैं।