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आज शोकधुन पूछ रही है / गीता पंडित

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आज शोकधुन पूछ रही है
कब तक ऐसे चलना है

दिन बाजीगर
बना हुआ है
गोली पीठ पर खाता है
फिर धीमे से दुश्मन का जा
भेजा वही
उड़ाता है
 
लेकिन संध्या
से पहले क्यों
उमर को ऐसे गलना है
कब तक ऐसे चलना है

आज कबूतर
उड़कर कहता
शांति हमारा नारा है
लेकिन नदी रक्त की बहकर
पूछ रही
क्या धारा है

समय सिसकता
बोल रहा क्यों
ऐसे मुझको ढलना है
कब तक ऐसे चलना है।