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आज सबको ख़बर हो गई / कल्पना 'मनोरमा'
Kavita Kosh से
आज सबको ख़बर हो गई।
रोशनी बेअसर हो गई।
हम रदीफ़ों में उल्झे रहे,
काफ़िये में कसर हो गई।
खो गए इस कदर भीड़ में,
जिन्दगी दर-ब-दर हो गई।
दर्द को ज्यों लगाया गले
रात काली सहर हो गई।
फूल बोते रहे उम्र भर,
क्यों कंटीली डगर हो गई।
साथ माझी का जैसे मिला
साहिलों को ख़बर हो गई।
‘कल्प’ से यूँ ही चलते हुए
हर किसी की गुजर हो गई।