भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज सारे फूल एक साथ खिलें / रवीन्द्रनाथ त्यागी
Kavita Kosh से
आज सारे फूल एक साथ खिलें
नावें चढ़ा लें अपने पीले पाल
बन्द कर दें वन के वृक्ष
गिरानी पीली पत्ती
आज मैं चाहता हूँ
ख़ुशी का एक युवा गीत लिखना
मात्र एक युवा गीत।
शहर की लकदक भीड़
हाथ फैलाकर भिक्षा मांग्ते बच्चे
फटे कपड़ों में भूखे मज़दूर
सड़कों पर सोते थके-मांदे कुली
इन सबके बीच निकलने पर
मुझे वह अपना गीत मिल गया वापस
जो मैंने सुनसान वनों में खोया था कभी
किसी नदी के किनारे।