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आज सावनी मेघन के / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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आज सावनी मेघन के
गहन छाया में,
चुपके चुपके लात दबले
सभकर नजर बचावत
चोरी-चोरी चल मत जइहऽ
आज प्रभात काल के आँख
मुँदा गइल बा,
पुरवइया बेकारे
केहू के पुकार रहल बा।
नीला आसमान के मुखड़ा
घनघोर मेघन के चादर से
तोपा गइल बा।
आज वन जंगल में
कही कवनो गुंजन नइखे,
सब घर के दरवाजा
आज बंद पड़ल बा।
निर्जन राह में अकेला बइठल
ऐ राही, तूं के हउवऽ
केकर पेंड़ा हेरऽ ताड़ऽ?
हे एकाकी सखा, हे प्रियतम,
हमरा घर के दरवाजा खुलले पड़ल बा
सपना लेखा सनमुख आके
भाग मत जइहऽ