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आज से पहले आज से ज़्यादा / रविन्द्र जैन
Kavita Kosh से
आज से पहले आज से ज़्यादा
ख़ुशी आज तक नहीं मिली
इतनी सुहानी ऐसी मीठी
घड़ी आज तक नहीं मिली
आज से पहले आज से ज़्यादा...
इस को संजोग कहें या क़िस्मत का लेखा
हुम जो अचानक मिले हैं
मन चाहे साथी पाकर हम सब के चेहरे
देखो तो कैसे खिले हैँ
तक़्दीरों को जोड़ दे ऐसे
किन्हीं तक़्दीरों को जोड़ दे ऐसे
लड़ी आज तक नहीँ मिली
आज से पहले आज से ज़्यादा...
सपना हो जाये पूरा, जो हमने देखा
ये मेरे दिल की दुआ है
ये पल जो बीत रहें हैं इन के नशे में
दिल मेरा गाने लगा है
इसी ख़ुशी को ढूँढ रहे थे
हम इसी ख़ुशी को ढूँढ रहे थे
यही आज तक नहीं मिली
आज से पहले आज से ज़्यादा...