भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज सोचा तो आँसू भर आए / कैफ़ी आज़मी
Kavita Kosh से
आज सोचा तो आँसू भर आए
मुद्दतें हो गईं मुस्कुराए
हर कदम पर उधर मुड़ के देखा
उनकी महफ़िल से हम उठ तो आए
दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं
याद इतना भी कोई न आए
रह गई ज़िंदगी दर्द बनके
दर्द दिल में छुपाए छुपाए