भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज हम उनके दर पे जाएंगे / शोभा कुक्कल
Kavita Kosh से
आज हम उनके दर पे जाएंगे
अपनी किस्मत को आजमाएंगे
उठ चुका ऐतबार अब उनका
अब नहीं उनको आजमाएंगे
जब भी मिल बैठेंगे कभी हम तुम
गीत खुशियों के गुनगुनायेंगे
वो इधर आये न नहीं आएं
आने घर को तो हम सजायेंगे
आएं तो वो कभी हमारे घर
अपने हाथों उन्हें खिलाएंगे
नातुवा है नहीफ है शोभा
दर पे हम उनके कैसे जाएंगे।