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आज हम दोनों सोचें, कुछ ऐसा करें / सांवर दइया

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आज हम दोनों सोचें, कुछ ऐसा करें ।
हवा में उडना छोड़, जमीं पाँव धरें।

लौट सकती हैं आज भी सब खुशियाँ घर,
आओ, मिलकर हम उसे बेनक़ाब करें!

झख मार कर यहीं बरसेंगे ये बादल,
अपने भीतर इतनी तपन इकट्ठी करें।

सदा कब रहती है यह आंधी-बरसात,
मौसम देखें, पर तोल कर उड़ान भरें।

बहुत लड़ चुके हम अलग-अलग लड़ाइयाँ,
मरना ही है तो अब क्यों न साथ मरें!