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आज हम धूप खाने आए हैं / देवी नागरानी
Kavita Kosh से
बारिशों में बहुत नहाए हैं
आज हम धूप खाने आए हैं|
अश्क जिनके लिये बहाए हैं
आज वो खु़द ही मिलने आए हैं|
लेके मां की दुआ मैं निकली हूं
दूर तक रास्तों में साए हैं|
घिर गई हूं न जाने किनके बीच
लोग अपने लगे पराए हैं|
दिल की बाज़ी लगाई है अक्सर
गो कि हर बार मात खाए हैं|
हौसले देखिये हमारे भी
आंधियों में दिये जलाए हैं|
मुस्कराकर भी देखिये ‘देवी’
अश्क तो उम्र भर बहाए हैं|