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आज हर सम्त भागते हैं लोग / शीन काफ़ निज़ाम
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आज हर सम्त भागते हैं लोग
गोया चौराहा हो गए हैं लोग
हर तरफ़ से मुड़े-तुड़े हैं लोग
जाने कैसे टिके हुए हैं लोग
अपनी पहचान भीड़ में खो कर
ख़ुद को कमरों में ढूंढते हैं लोग
बंद रह-रह के अपने कमरों में
टेबिलों पर खुले-खुले हैं लोग
ले के बारूद का बदन यारों
आग लेने निकल पड़े हैं लोग
हर तरफ़ इक धुआँ सा उठता है
आज कितने बुझे-बुझे हैं लोग
रेस्तॉरानों की शक़्ल कह देगी
और क्या सोचते रहे हैं लोग
रास्ते किस के पाँव से उलझें
खूंटियों पर टंगे हुए हैं लोग