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आज हवाओं में जहर फैल रहा / सांवर दइया
Kavita Kosh से
आज हवाओं में जहर फैल रहा।
आदमी के होते यह बेजा हुआ।
अंधेरों की बात कोई नयी नहीं,
यह दौर तो है अपना देखा हुआ।
अब जरूरत नहीं दलील देने की,
जानते पांसा किसका फेंका हुआ।
आपके भेजे फल चखे प्यार से,
आज पूरी बस्ती को हैजा हुआ!
आग लगी है तो अब किसे जगायें,
हर कोई करवट बदल लेटा हुआ!