आज है पूनम शरद की, तुम कहाँ हो? / रुचि चतुर्वेदी
गीत मन ये गा रहा है प्रेम के कुछ,
आज है पूनम शरद की तुम कहाँ हो।
धड़कनों ने स्वर सुनाये हैं नए कुछ,
साँस की वीणा बजे ही जा रही है।
चाँदनी श्रंगार करती है धरा का,
रात मधुरिम राग कोई गा रही है।
अधर करते हैं प्रतीक्षा बस अधर की
देह पर लाली हरद की तुम कहाँ हो॥
आज सरिता बन गयी दर्पण निशा में,
देख लो जो चित्र नयनों में बसा है।
आज मुख पर चारुचंदा-सी मधुरता,
प्रेम का स्पर्श अधरों पर हँसा है॥
नेह का वह चन्द्रमा जगमग हुआ है
चांदनी तन पर वरद की तुम कहाँ हो॥
गीत मन ये गा रहा है प्रेम के कुछ,
आज है पूनम शरद की तुम कहाँ हो।
धड़कनों ने स्वर सुनाये हैं नए कुछ,
साँस की वीणा बजे ही जा रही है।
चाँदनी श्रंगार करती है धरा का,
रात मधुरिम राग कोई गा रही है।
ये अधर करते प्रतीक्षा बस अधर की
देह पर लाली हरद की तुम कहाँ हो॥
गीत मन ये गा रहा है प्रेम के कुछ,
आज है पूनम शरद की तुम कहाँ हो॥
आज सरिता बन गयी दर्पण निशा में,
देख लो जो चित्र नयनों में बसा है।
आज मुख पर चारुचंदा-सी मधुरता,
प्रेम का स्पर्श अधरों पर हँसा है॥
नेह का वह चन्द्रमा जगमग हुआ है
भाव ने परिधी वृहद की तुम कहाँ हो॥
गीत मन ये गा रहा है प्रेम के कुछ,
आज है पूनम शरद की तुम कहाँ हो॥