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आज होती क्यों निराशा देश को / रंजना वर्मा

आज होती क्यों निराशा देश को।
दे रहा जो प्रीति के सन्देश को॥

जान लें गुण लोग बस दो चार हैं
देखती दुनियाँ हमेशा वेश को॥

कामना सबके हृदय में है यही
दें मिटा दुर्बल जनों के क्लेश को॥

इस धरा को हम सँवारें प्रेम से
स्वर्ग से बढ़कर करें परिवेश को॥

विश्व के बनकर सुहृद हम सर्वदा
याद नित करते रहें सर्वेश को॥

स्नेहमय वातावरण निर्मित करें
नष्ट कर दें क्रोध ईर्ष्या द्वेष को॥