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आज / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
दिन-पर-दिन होता साकार हमारा सपना,
सार्थक होगा निश्चय युग-ज्वाला में तपना !
कल तक जो धुँधला-धुँधला-सा था दूर बहुत,
वह लक्ष्य हमारा आज निकट नव-आभा-युत !
कल तक जो हमको शंका से देख रहे थे,
और हमारे यश पर कीचड़ फेंक रहे थे,
समता-संस्थापन में आ रोड़े अटकाए,
व्यर्थ हमारे पथ पर आये दाएँ-बाएँ !
आज वही पहचान रहे मानवता की गति,
छोड़ रहे गत जर्जर-मिथ्या-युग के प्रति रति,
सीख रहे अभिनव आदर्शों को अपनाना,
कर्कश स्वर की जगह मधुर-जीवन का गाना !