भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज / मोहन राणा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज फिर हवा

कल रात की तरह

सरसराती सरसराती

पत्तों को छूकर

खिड़कियों पर टकराती

10.11.1996