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आज / वाहरू सोनवाने / नितिन पाटील
Kavita Kosh से
भीगा दु:ख,
भीगी हरियाली-सा
दुःख की हरियाली में बैठकर
सुख का सपना सँजोकर
अन्धेरे से चान्दनी को देखना और
हर दिन का दुःख दिन में भुलाना
कल का दुःख भोगने के लिए ।
लेकिन, ऐसा
और कितने दिन ?
जब, चान्दनी ही छिप जाती हैं
बादलों के पीछे
तब, चमकती हैं बिजली
दुःख के हरे जंगल में ।
मूल मराठी से अनुवाद : नितिन पाटील