भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आझ अबीर गुलाल उड़ा लऽ / सच्चिदानंद प्रेमी
Kavita Kosh से
आझ अबीर गुलाल उड़ा लऽ।
फाग-राग-उच्छाह भरल दिल
चू-चू हो गेल खाली
कहाँ छिपल हऽ प्रान प्रिये तू
दरसन दे दऽ हाली
माजर बढ़ के होलो टिकोरा
कनखी डेरा डालऽ