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आठमोॅ सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'

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आठमोॅ सर्ग

सागर पार करि जब चम्पक लंका नभ पर छेलै
तेॅ लंकिनी के माथोॅ ठनकै है की आफत अैलै

जब तालुक लंकिनी आबि केॅ महल में बात बताबै
तब तालुक चम्पक आधोॅ लंका नापीं मड़राबै

सेनानायक बीर अकम्पन केॅ अन्देशा भेलै
यै लेली हौ तुरत भागि सेना छौॅनी में पहुँचलै

सब केॅ करी सतर्क तुरत हौ राजमहल में अैलै
फिन विमान पर नजर राखि हौ तर्क-वितर्क में पड़लै

यही बीच जबेॅ राजमहल के आरो नगीच पहुँचलै
तबेॅ कैकसी लखि विमान केॅ कुछ आशान्वित भेलै

अरे, ई तेॅ चम्पक कुबेर कें कथी लेॅ हौ यहाँ अैलै
पता नहीं की चाहै कुबेरें मनें खुदबुदी भेलै

फेनूं सोचै, हौ जों यहाँ लड़बै के नीयत अैतियै
तेॅ विमान के साथ-साथ सेनां भी ओकरोॅ होतियै

मालूम होय छै मुनि के कहलॉ सें हौ लंका आबै
हमरा सभ केॅ कुशल छेम जानै के मकसद पाबै

वै विमान सें सभै सें पहिने रावण नीचें उतरें
सम्मुख पावी माय कैकसी पैर छुवै लेॅ सपरै

दू सुन्दर बाला पुष्पक में तब तक वै पेॅ ठहरली
जबेॅ बातोॅ के खुलाशा भेलै सास के पास उतरली

माय के असमंजस देखी केॅ दशकन्धर मुस्काबै
बोललै माय तोरे सेवा लेॅ है दू सुन्दरि आबै

जनम पाय तोरा सें हम्में, सेवा करहै नै पारलां
यै लेॅ दू अनुचरी पकड़ि तोरे ही पुतहू बनैलां

आबेॅ पुतहुऐं करतें रहतौ तोरोॅ सेवा निरन्तर
जांततेॅ-मलतें पोता देतौं कुछू समय के अन्दर

कैकसी फेनु ठठाय केॅ हँसली दोनों पुतहू लजैलै
कुल रीति के नेम धरम के साथ हवेली गेलै

बहू भोज लेॅ राजभवन में होलै खूब तैयारी
देश-विदेश में नेतोॅ भेजी उत्सव करै लेॅ भारी

रावण हाथें हार पायकेॅ जेन्हें भागलै कुबेर
तेन्हैं जीत के डंका केॅ चहुओर छितरलै शोर

लोकपाल लंकेश कुबेरोॅ केॅ धनेश सब बोलै
ओकरा भागला सें सब टा धन लंका में ही रहलै

यै लेॅ धनीं देश लंका छै तिन्हू लोक ने जानै
अति सुन्दर रमणीक क्षेत्र केॅ सभटा प्राणी मानै

फेनूं जबेॅ कुबेर पछाड़ी रावण राजा भेलै
वै वरदानी के ताकत सें तीनों लोक थरैॅलै

धरा आरो पाताल के राजा बहुतें नेतोॅ मानी
पुत्री साथें भोॅज में जुटलै सभ्भैं रिस्ता ठानी

कैकसी सें आशीष पाय लेॅ कत्तेॅ राजकुमारी
दुल्हिन बनै केॅ इच्छा सें वें खोजै आपनोॅ बरी

वै में छाँटी तीन दुल्हनियाँ कैकसी रोकी राखै
बाँकी सब कन्या केॅ निज राजोॅ में लौटै भाखै

दू टा कन्या कुंभकरण लेॅ कैकसीं मन केॅ भावै
बांकी एक टा निकवा के सुत विभीषणोॅ लेॅ पावै

कुंभकरण लेॅ जे दू कन्या दुल्हन रुपें छँटैली
वै में एक पाताल नरेश विरोचन पौत्री छेली

दोसरी कन्या वृषकेतु केॅ बड्डी चतुर सुजानी
एक के नाम बज्रज्वाला आरो दूजे सानन्दिनी

तेसरी कन्या सरमा जे गन्धर्व राज के भेली
शैलुष सुता हौ भक्त विभीषण निमित्त चुनैली गेली

बाँकी बचलोॅ तीन भाय त्रिसिरा खरदूषण रहलै
वै तीन्हूं आपन्है पशन्द कन्या चुनि जनपद गेलै

कन्या जे कैकसी चुनैली तुरत सुहागिन बनली
सरमा छोड़ि मन्दोदरि संगे राजमहल में गेली

सरमा आरो विभीषण गेलै नव निर्मित आवास
निकवा आरो त्रिजटा संगें होलै अलगे वास

ढेर दिनोॅ तक रास रंग में सुक्ख के भोगी अकूत
यै बीचें मन्दोदरी जन्मै मेघनाद इक पूत

रास रंग ने पिण्ड नैं छोड़ै होलि कैकसी चिन्तित
है रंङ अधिक समैय्या चलतै बाधित होते निज हित

फेनू एक दिन पुत्र दशानन केॅ समीप बैठाबै
आपनोॅ चिन्ता वीर पुत्र केॅ जल्दी सें बतलाबै

बोलली लक्ष्य केॅ पाबै खातिर तों दिग्दर्शन करल्हैं
टोह सभै जग्घा के लै लै लंका घूरी-तों अैल्हैं

सब बातोॅ केॅ जानी तोरा सुस्ती केनां भेलौ
हौ इच्छा शक्ति ठो तोरोॅ कहाँ चरै लेॅ गेलौ
रावण बोललै, माय, अवसि हम्में लक्ष्योॅ केॅ पुरैबै
काल्हे हम्में एकरा लेली एक दरबार बोलैबै

नाना माल्यवान केॅ इखनी भेजै छी सन्देशा
तोरे मौताविक सब टा होतै कर मत तों अन्देशा

दोसरे नि दरबार ठो सजलै सभे सभासद जुटलै
लक्ष्य के पीछा करै प्रश्न पर अलग-अलग मत फुटलै

कोय तेॅ कहै धरा जीती केॅ दोसरोॅ सभा बुलाबेॅ
फिन पाताल इन्द्रलोकोॅ पर केना विजय ठो पाबेॅ

फिन कोय कहै जबेॅ लंकेश्वर बिल्कुल अजर अमर छै
तेॅ फिन सीधे स्वर्ग जाय ललकारै में की डर छै

सबके अन्त विभीषण बोललै सुनो भाय लंकेश
एक टा किमती सल्हा दै छी लाग्हौं जों नैं ठेस

ढेर सिनी दुर्लभ वर तों ब्रह्मा आरो शिव सें पाभौ
मतर एते टा शक्ति सें तो नै अपना के अघाभौ

हम्में कहभौं आरो ताकत तोहें पावेॅ पारोॅ
आदिशक्ति आरो कुलदेवी के पूजा जों तोॅ धारोॅ

आरो एक उपाय छौं तोरा यज्ञ के करोॅ तैयारी
जतेॅ यज्ञ भी करभौ भैय्या ओत्ते ताकत भारी

विभीषणोॅ के सल्हा पर फिन सबने पीटै ताली
रावण के मंजूरी मिलथैं सभा भवन ठो खाली

फिन पाताल भेजि नाना केॅ शुक्राचार्य नेताबै
यज्ञ करावै लेलि, शुक्रजी लंकापुरी चलि आबै